सत्ताइस साल पहले दुनिया छोड़ गईं दीदी की नातिन ने जो सैनफ्रांसिस्को में रह रही है , जब ये फैसला लिया कि वो अपने नाम के बीच में दीदी का नाम जोड़ लेगी ...... आँखें भी नम हो उट्ठीं ......
एक बार फिर मैं जी उट्ठी हूँ
तेरे नाम के अक्षरों में झिलमिला रही हूँ मैं
ज़माने ने मुझे भुला ही देना था
मेरे नाम को अपने नाम में जगह देना , हाँ ये आसान नहीं है
हर बार तेरे नाम के साथ-साथ पुकारी जा रही हूँ मैं
कोई धागा है प्रेम का
कोई दीप है जो जल रहा है
नाज़ों से पाला था जिन्हें , उसी परवरिश की फसल लहलहाई है
कि हैरान हो रही हूँ मैं
मेरे बच्चों , ये बाग खिला ही रहे
तुम ज़माने को बदलने का दम भी रखते हो
महकने लगी है फ़िजां
कानों में घुल गई है मिठास
मैं ही मैं तो हूँ , गुनगुना रही हूँ मैं
तुम्हारी आँख की नमी में आज भी मुस्कुरा रही हूँ मैं
तुम्हारे साथ-साथ चल रही हूँ मैं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2312 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी रचना अपनेपन से भरी ..
जवाब देंहटाएंमन छूने वाली रचना
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