वक़्त मेरी धज्जियाँ उड़ाता ही रहा
मैं शब भर चिन्दी-चिन्दी बटोरती रही
टूटे सपनों की किर्चें , धज्जी-धज्जी
मैं दम भर लम्हा-लम्हा जोड़ती रही
चल रहा है हर कोई मंजिल की तरफ
ये और बात है के ज़िन्दगी ही रुख मोड़ती रही
ये मेरा अपना आप है , उधेडूं या सिलूँ
सीवनें ,सलवटें ,बखिये , जोड़ती रही
रेत के टीले , धँसते पाँव ,सहरा का सफर
मैं माथे से हरदम पसीना पोंछती रही
मेरा वज़ूद तक है छितराया हुआ
हवाओं के रुख को सलाम ठोकती रही
ये मेरा जलावतन है या अहले-चमन
ज़िन्दगी के ताने-बाने का सूत अटेरती रही
मैं शब भर चिन्दी-चिन्दी बटोरती रही
टूटे सपनों की किर्चें , धज्जी-धज्जी
मैं दम भर लम्हा-लम्हा जोड़ती रही
चल रहा है हर कोई मंजिल की तरफ
ये और बात है के ज़िन्दगी ही रुख मोड़ती रही
ये मेरा अपना आप है , उधेडूं या सिलूँ
सीवनें ,सलवटें ,बखिये , जोड़ती रही
रेत के टीले , धँसते पाँव ,सहरा का सफर
मैं माथे से हरदम पसीना पोंछती रही
मेरा वज़ूद तक है छितराया हुआ
हवाओं के रुख को सलाम ठोकती रही
ये मेरा जलावतन है या अहले-चमन
ज़िन्दगी के ताने-बाने का सूत अटेरती रही
मेरा वज़ूद तक है छितराया हुआ
जवाब देंहटाएंहवाओं के रुख को सलाम ठोकती रही
ये मेरा जलावतन है या अहले-चमन
ज़िन्दगी के ताने-बाने का सूत अटेरती रही
....सूत अटेरना शब्द सटीक पिरोया है आपने ...
बहुत सुन्दर रचना ...
बेशक एक सुन्दर पोस्ट. जिंदगी से भरपूर।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति...वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...
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