गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

हालात के हाथों में

हालात के हाथों में है चाभी अपनी
जिन्दगी ये भी है कैसी गुलामी अपनी

कौन साबुत है बचा वक्त के हाथों से
सुहाने पल भी हैं सुनामी अपनी

ख़्वाबों के बिना जिन्दगी का ठौर-ठिकाना ही नहीं
न देखें इन्हें तो ये भी है खराबी अपनी

मुँह मोड़ के चल देते हैं जब जब हम
गुलशन की नजर में होती ये खामी अपनी

चिकने घड़ों से पूछो कैसे रखे हो ठण्ड
धुँधली है नजर टूटी है कमानी अपनी

मुश्किलें डाल डाल हौसला पात पात
जिन्दगी ये भी है चाल जवाबी अपनी

3 टिप्‍पणियां:

  1. ख़्वाबों के बिना जिन्दगी का ठौर-ठिकाना ही नहीं
    न देखें इन्हें तो ये भी है खराबी अपनी

    मुँह मोड़ के चल देते हैं जब जब हम
    गुलशन की नजर में होती ये खामी अपनी
    Wah! Kya umda rachana hai!

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  2. बहुत सुन्दर, सार्थक कविता| धन्यवाद|

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  3. मुश्किलें डाल डाल हौसला पात पात
    जिन्दगी ये भी है चाल जवाबी अपनी

    bahut khoob
    zindgee ko achhee tarah se bayaan kiyaa aapne

    जवाब देंहटाएं

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