कैसा है सिला
जिन्दगी तेरे सिवा
कोई लुभा न पाया हमें
सहराँ की तपती रेत पर
साये की हसरत लिये
टुकड़ों में धूप बटोरी हमने
दरख्त के साये में
छन-छन के आती
धूप निहारी हमने
चाँद पहलू में लिये
चाँदनी की आरजू में
यूँ रात गुजारी हमने
कैसा है सिला
किश्तों में मिली
जिन्दगी , तेरी चाँदनी बटोरी हमने
अति सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें।
संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
दरख्त के साये में
जवाब देंहटाएंछन-छन के आती
धूप निहारी हमने...
अच्छा प्रयोग है...
या यूं कह सकते हैं-
...तपती राहों के लिए एक शजर काफ़ी है.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं