सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

झूठ के क़दमों

झूठ के क़दमों चला नहीं जाता

झूठ के पंख लगे होते हैं

झूठ आँख मिला कर बात नहीं करता

वक़्त की कैंची से सब्र नहीं होता

सुंघा देती है जमीन ,पंख कतरे होते हैं

झूठ के पेड़ पर फल नहीं होता

डाल,पत्ते ही बीज ,जड़ खा जाते हैं

सच को रहम नहीं होता

झूठ उगता है बीमार लताओं की तरह

उन पर मौसम का कोई करम नहीं होता

सच की धरती पर ही फूल उगा करते हैं

झूठ के दम पर सबेरा नहीं होता

कांटे धरती की नमी सोख लेते हैं

बिन नमी काँटों संग गुजारा नहीं होता

3 टिप्‍पणियां:

  1. सच की धरती पर ही फूल उगा करते हैं


    झूठ के दम पर सबेरा नहीं होता ........

    bahut hi sundar baat kahi aapne.

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  2. achcha likha hai aapney.

    दीपावली की हािदॆक शुभकामनाएं । ज्योितपवॆ आपके जीवन में खुिशयों का आलोक िबखेरे, यही मंगलकामना है ।

    दीपावली पर मैने अपने ब्लाग पर एक रचना िलखी है । समय हो तो आप पढें़और प्रितिक्रया भी दें ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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