सब कुछ भूलने के लिए बना है
वो बचपन का घर
शहर-शहर घूम कर भी
ज़िंदा है ज़हन में
मगर भूलने के लिए बना है
हम बड़ी दूर चले आये हैं ,
उस घर की पुरवाई के सहन से
हालत हो या हों हालात
कड़वी , कसैली यादें हों
या हों मीठे से जज़्बात
सब भूलने के लिए बने हैं
जो गुज़र जाता है
बचता नहीं है मुट्ठी में
समा जाता है सब ही काल के चक्र में
सब भूलने के लिए बना है
सब भूलने के लिए बना है
तो फिर ये जद्दो-जहद कैसी है
क्या इसलिए कि हाड़-माँस के पुतलों में
दिल भी धड़कता है
या फिर इसलिए कि ये सफ़र हसीन हो जाए
या फिर इसलिए भी कि दुनिया ज़हीन हो जाए
और , और हम तुम कुछ महीन हो जाएँ
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