एक बड़े प्यारे मित्र कैंसर से जूझ रहे हैं ,जब उनसे मिलने अस्पताल गई ,मेरा हाथ पकड़ कर वे बेतहाशा रोये ...कहने को तो उन्हें सँभाला ...मगर वापिस आते तक मन ने न जाने कितनी यात्रा कर ली थी ...
गर पता हो के किसी भी पल छिन सकती है ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी , तेरी इतनी तलब पहले तो न की थी मैंने
ये कौन सा चुग्गा डाला है मेरे आगे
फफक के सीने में ठहर गई हो शायद
मुट्ठी से छूट गई हो तो ये अहसास आया
भूला हुआ राही कोई अपने घर आया
सीने से लगा लो मुझे , थक गया हूँ बहुत
तन्हा हूँ , मेरे दर्दों का न सहभागी कोई
अब ये वक्त आन खड़ा है सिरहाने
उल्टी गिनती है साँसों की , फिर ये चूहे बिल्ली सी आँख मिचोली कैसी
कोई पट्टा तो नहीं लिखा था मेरे नाम
फिर भी ये खता की मैंने , सच मान के बैठा था इसी दुनिया को
मुसाफिर खाना है , कैसे कोई समझाये
क्यूँ मोड़े हो मुहँ , खूँटे से उखड़ कैसे चल पाता है कोई
गर ये घर है मेरा , फिर कौन से घर जाना है
काया पिन्जरा है तो मैं तोता क्यूँ हूँ
सुबह से शाम हुई , रोता क्यूँ हूँ
मेरे सवालों ने मुझे घेरा है
जग चिड़िया का रैन बसेरा है
मेरे माली ने मुझसे नाता तोड़ा क्यूँ है
आओ सीने से लगा लूँ मैं तुम्हें
ज़िन्दगी तेरी इतनी तलब पहले तो न की थी मैंने
गर पता हो के किसी भी पल छिन सकती है ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी , तेरी इतनी तलब पहले तो न की थी मैंने
ये कौन सा चुग्गा डाला है मेरे आगे
फफक के सीने में ठहर गई हो शायद
मुट्ठी से छूट गई हो तो ये अहसास आया
भूला हुआ राही कोई अपने घर आया
सीने से लगा लो मुझे , थक गया हूँ बहुत
तन्हा हूँ , मेरे दर्दों का न सहभागी कोई
अब ये वक्त आन खड़ा है सिरहाने
उल्टी गिनती है साँसों की , फिर ये चूहे बिल्ली सी आँख मिचोली कैसी
कोई पट्टा तो नहीं लिखा था मेरे नाम
फिर भी ये खता की मैंने , सच मान के बैठा था इसी दुनिया को
मुसाफिर खाना है , कैसे कोई समझाये
क्यूँ मोड़े हो मुहँ , खूँटे से उखड़ कैसे चल पाता है कोई
गर ये घर है मेरा , फिर कौन से घर जाना है
काया पिन्जरा है तो मैं तोता क्यूँ हूँ
सुबह से शाम हुई , रोता क्यूँ हूँ
मेरे सवालों ने मुझे घेरा है
जग चिड़िया का रैन बसेरा है
मेरे माली ने मुझसे नाता तोड़ा क्यूँ है
आओ सीने से लगा लूँ मैं तुम्हें
ज़िन्दगी तेरी इतनी तलब पहले तो न की थी मैंने