यूँ दूर के चन्दा हो
सारी बातेँ न पहुँचतीं तुझ तक
मेरी सदायें लौट आतीं मुझ तक
चाँदनी रात का भरम ही सही
तेरा इतना सा करम ही सही
है आसमाँ तो अँधेरा बहुत
चाँद के साथ सारे तारे आते हैं निकल
मेरा तारों से कोई गिला ही नहीं
जिन्दा रहे ये आस के तू है सामने
मेरी हर राह पहुँचती तुझ तक
नजर के सामने तू है
काफी है मेरी पलकों पे उजालों की तरह
मेरी राह में तेरे क़दमों के निशानों की तरह
यूँ दूर के चन्दा हो
सूरज उगता है बस तेरे लिए ....... मौके , हिम्मत और उम्मीद लिए ...... ये सौगात है बस तेरे लिए .....
बुधवार, 28 सितंबर 2011
रविवार, 18 सितंबर 2011
चमकीला होता है अम्बर क्या
ऐ सूरज , ऐ चन्दा बता
वो दिन कैसा होता है
अरमान की बिंदिया माथे सजा
जब रोज सुबह कोई गाता है
चमकीला होता है अम्बर क्या
मेरी उम्मीदों से ज्यादा
वो लाली , वो गुन्जन
वो फूँक भला कौन भरता है
खिल उठते हैं फूल सभी
चिड़ियाँ भी गातीं मस्ती में
निशा के सँग सो जाते
वो समझ भला कौन भरता है
वो महक भला आती कैसे
बेचैनी सी हो रूहों में
सतरंगी किरणों के द्वारे
कौन रँग प्याली में भरता है
पलकें बिछती हैं राहों पर
सिर झुकता है सजदे में
उतरा न उतरा वही लम्हा
जो मन के फलक को भरता है
वो दिन कैसा होता है
अरमान की बिंदिया माथे सजा
जब रोज सुबह कोई गाता है
चमकीला होता है अम्बर क्या
मेरी उम्मीदों से ज्यादा
वो लाली , वो गुन्जन
वो फूँक भला कौन भरता है
खिल उठते हैं फूल सभी
चिड़ियाँ भी गातीं मस्ती में
निशा के सँग सो जाते
वो समझ भला कौन भरता है
वो महक भला आती कैसे
बेचैनी सी हो रूहों में
सतरंगी किरणों के द्वारे
कौन रँग प्याली में भरता है
पलकें बिछती हैं राहों पर
सिर झुकता है सजदे में
उतरा न उतरा वही लम्हा
जो मन के फलक को भरता है
बुधवार, 7 सितंबर 2011
ये जो सामान रखा है
ये जो सामान रखा है
कितना लहू , कितने चिथड़े हुए अरमान का है
जीवन तो वैसे भी पानी का बुलबुला
ज़रा सी ठेस लगी
बिखरा तो समेटा ही नहीं जाता
सूली पे टंगे हुए अरमान का है
ये जो सामान रखा है
लिखने चला है किस्मतें
रातों की नींद ले जायेंगी , सलीबें सारी
कोई पढ़ेगा फातिहा , कोई दुआ करेगा
इनमें अब भी है कोई आदमी सा बचा
कितनी चीखें , बिलखती यादें ,
तड़पते हुए इन्सान का है
ये जो सामान रखा है
हम छोटी छोटी बातों पर रो देते
टूटे हैं वादे , रूठी है जिन्दगी ,
उडीं हैं छतें
कहर ढाते हुए आसमान का है
ये जो सामान रखा है
आवाज हूँ मैं तेरे सीने की
कितना बारूद , बीमार है मन
धुआँ धुआँ हुए जमीर सा
सुनता ही नहीं तू
किस मिट्टी , किस कान का है
ये जो सामान रखा है