नहीं नाराज नहीं
खाते हैं , पीते हैं , इबादत भी करते हैं
उम्मीद अब मुरझाने लगी है
गम कोई खाने लगी है
इंतज़ार को बहलाने के लिये शब्द कम पड़ने लगे हैं
नीँद आँखों से कोसों दूर
सपने माँगते मुआवज़ा
बीज बोये , अम्बर ओढ़ाए
मेहरबानियों ने मुँह मोड़ा
आदमी वक्त से पहले मर जाता है
जब वो गुलशन से मुँह मोड़ लेता है
चाँद-सितारे , धरती-अम्बर , बहारें सारे
हो जाते हैं बेमायने
रँग सारे कौन चुरा ले गया
नूर के वो शामियाने कहाँ गए
पलट दे जो तू दो-चार सफ्हे
मैं इन वरकों को भुला दूँ
न आये हों जैसे ये दिन भी कभी
गम के सारे अहसास सुला दूँ
नहीं नाराज नहीं ...
सूरज उगता है बस तेरे लिए ....... मौके , हिम्मत और उम्मीद लिए ...... ये सौगात है बस तेरे लिए .....
मंगलवार, 28 जून 2011
मंगलवार, 21 जून 2011
उम्र को दस्तक देते हुए
किसने देखा है ...
डाल पे आम को पकते हुए
और उम्र को दस्तक देते हुए
उल्टी गिनती है लम्हों की
और ज़ार-ज़ार दिल रोते हुए
कुछ वक्त से पहले पक जाते
कुछ कच्चे तोड़ लिये जाते
मुखड़े जो थे अरमान भरे
रँगों के निशाँ हैं खोते हुए
सलवट सलवट जो सोया है
झुर्री झुर्री अरमान बड़े
काटीं हैं सबने वही फसलें
खुशबू के चमन से होते हुए
चाँदी चाँदी है रातों की
और धूप सुनहरी छाया बनी
छत के नीचे कोई तपता नहीं
मँजिल के बहाने बोते हुए
डाल पे आम को पकते हुए
और उम्र को दस्तक देते हुए
उल्टी गिनती है लम्हों की
और ज़ार-ज़ार दिल रोते हुए
कुछ वक्त से पहले पक जाते
कुछ कच्चे तोड़ लिये जाते
मुखड़े जो थे अरमान भरे
रँगों के निशाँ हैं खोते हुए
सलवट सलवट जो सोया है
झुर्री झुर्री अरमान बड़े
काटीं हैं सबने वही फसलें
खुशबू के चमन से होते हुए
चाँदी चाँदी है रातों की
और धूप सुनहरी छाया बनी
छत के नीचे कोई तपता नहीं
मँजिल के बहाने बोते हुए
मंगलवार, 14 जून 2011
दम है अपना
सालों बाद बच्चों के साथ हरमन्दर साहिब , गोल्डन टेम्पल , अमृतसर आई हूँ । सरोवर के पास बैठ कर शबद-कीर्तन सुन रही थी ......
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
मुँह पर जल के छींटे डाले और सच्चे पातशाह के लिये मन ने गुनगुनाना शुरू किया । शबद की ये तीन पंक्तियाँ मैंने भी चुरा लीं , और उसी लय में गाया ....आवाज भी मेरी है और स्टेंजाज़ भी मेरे हैं ......
tera sadka.aup10K Scan and download
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
रूह मेरी को तू नहला दे
जन्मों की मैं मैल मिटा लूँ
गठरी सिर पर बहुत है भारी
रख के किनारे थोड़ा सुस्ता लूँ
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
रोग कोई भी थोड़ी देर का साथी
पीड़ से दामन अपना छुड़ा लूँ
बैसाखी नहीं तू , दम है अपना
जब जी चाहे तुझको बुला लूँ
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
मुँह पर जल के छींटे डाले और सच्चे पातशाह के लिये मन ने गुनगुनाना शुरू किया । शबद की ये तीन पंक्तियाँ मैंने भी चुरा लीं , और उसी लय में गाया ....आवाज भी मेरी है और स्टेंजाज़ भी मेरे हैं ......
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बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
रूह मेरी को तू नहला दे
जन्मों की मैं मैल मिटा लूँ
गठरी सिर पर बहुत है भारी
रख के किनारे थोड़ा सुस्ता लूँ
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा
रोग कोई भी थोड़ी देर का साथी
पीड़ से दामन अपना छुड़ा लूँ
बैसाखी नहीं तू , दम है अपना
जब जी चाहे तुझको बुला लूँ
बाबा मेरे तेरा सदका
तू सच्चा साहिब
तू रखवाला , सदा सदा