मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

सलवट-सलवट चेहरा


झुर्री-झुर्री हाथ हुए हैं ,सलवट-सलवट चेहरा 

खो ही गया वो नन्हा बच्चा,

बड़ा हुआ था पहन के जो 

अरमानों का सेहरा 


एक-एक कर कहाँ गये वो उम्र के सारे चोंचले

रहे न काम के , बदला रंग-ढंग वक्त का चेहरा-मोहरा 


आ ही गए हैं यहाँ तलक तो 

हार के भी हम जीते समझो 

बतियाता है कानों में मेरे 

वही सलोना चेहरा 


भरी दोपहरी सर पर गुजरी 

फिर भी देखो सीना नम है 

यही हमारा दम-खम है 

राज यही है गहरा