गुरुवार, 3 नवंबर 2011

तुम्हारे जाने से

बच्चों के घर में कुछ दिन बिता कर जाने के बाद एक अजीब सी ख़ामोशी छा जाती है , जिसे शब्द दे पाना नामुमकिन सा है ...



तुम्हारे जाने से यूँ लगता है
बहार आने से पहले चली गई शायद
कौन जगायेगा मुझे नीँद से उँगली पकड़
कौन चलेगा मेरे साथ साथ शामो-सहर
स्याही बन कर वही बात कागज़ पर चली आई है
इक चुप सी लगी है , ये रुत दूर तलक छाई है
मुँह बिचकाती हुई घर की दीवारें हैं
समझाते हुए खुद को इक उम्र गुजरी है
उड़ना है बहुत दूर तक तुम्हारे पँखों से
नीँद आती भी नहीं , जगी भी नहीं हूँ
सारे सपने तुम साथ ले कर गए
तुम्हारे साथ था ये दिल लगा हुआ
और अब , दिल लगाना पड़ता है

5 टिप्‍पणियां:

  1. स्याही बन कर वही बात कागज़ पर चली आई है
    इक चुप सी लगी है , ये रुत दूर तलक छाई है
    Aprateem rachana!

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  2. तुम्हारे साथ था ये दिल लगा हुआ
    और अब , दिल लगाना पड़ता है

    इस दिल का भी क्या कहना है जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,शारदा जी.

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  3. nirantar intzaar mein
    phir se tadapnaa padtaa hai

    sundar ati sundar

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  4. नीँद आती भी नहीं , जगी भी नहीं हूँ
    सारे सपने तुम साथ ले कर गए....
    एक शेर याद आ गया...आप इसे बच्चों के जवाब के रूप में देखें, तो शायद कुछ राहत मिलेगी-
    मत रो मां, मैं चांद बनूंगा
    मुझको रोज़ निहारा करना...
    अल्लाह बच्चों को कामयाबी की बुलंदी अता फ़रमाएं
    (आमीन)

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