शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

तुझमें वो मूरत

मेरे सपनों में आते हो जब तुम
बहुत बातें करते हो
आँख खोलती हूँ जब मैं
पास बैठे हो देखती हूँ
वही अक्स ढूँढती हूँ
पूछती हूँ जब मैं कि
' क्या हुआ '
' क्यों ' तुम्हारा जवाब है
या कि सवाल ?
सवालों सवालों में उलझे हैं हम
वही है सूरत , वही है सीरत
जब तक मैं ढूँढू
तुझमें वो मूरत
ये दुनिया ख़ूबसूरत है
ये दुनिया ख़ूबसूरत है

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

तार-तार सारी कहानी

कमजोर हो जाते हैं वो हिस्से
वक्त की चादर में पैबन्द लगे

चुक जायेगी उम्र सारी
ये कलाकारी रफू ही लगे

रफूगर के माथे पे शिकन
फनकारी भी मजबूरी ही लगे

गोटे-किनारी , सलमे-सितारे
हसरतों को ओढ़नी लगे

उम्र लगे सीते हुए
पलक झपकते ही रँग बदरँग लगे

टाँका-टाँका सिले लम्हे-लम्हे के सितम
टूटा टाँका तार-तार सारी कहानी ही लगे

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

पाकीज़गी हमारी खुराक है

पहले आप , पहले आप वाले देश में ; मैं ही मैं , मैं ही मैं होने लगी

वो भी चलें , हम भी चलें , क्या सब साथ चल सकते नहीं

ऊपर वाला हर उस दिल में रहता है , जहाँ फर्क किया जाता नहीं

वो मौजूद है कण-कण में , फिर भी हम उसे देख पाते नहीं

हम उसे महसूस करते हैं , प्रार्थनाओं में , इबादत में

मन्दिर हो कि मस्जिद हो ,दुआओं को उठे हाथों में

हिन्दू करता है साक्षात्कार परमात्मा का

मुस्लिम करता है दीदार अल्लाह का

एक ही नूर है , तरीके उस तक पहुँचने के जुदा-जुदा हैं

इन्सानियत का धर्म है सब से बड़ा , खुद चलो औरों को भी चलने की जगह दे दो

इतिहास नहीं बख्शेगा , लाशों के दिलों पर जो लिखने चले हो तुम

पाकीज़गी हमारी खुराक है , कुछ खाना मन को भी दे दो , इन्सान बने रहने दो

लम्हों ने खता की , सदियों ने सजा पाई ; जुनूनों ने की गलती , निर्दोषों ने सजा पाई

इतना सामान सर पर इकट्ठा मत करो , कि टूटे रीढ़ की हड्डी , पीढ़ियों को बोझा ढोना पड़े

चलने की जगह हो , उड़ने को कहाँ जाएँ