सोमवार, 27 जुलाई 2009

कैसे करें सच का सामना


कैसे करें सच का सामना


ये पकड़ता है वही रग , जो बड़ी कमजोर है


है बुलन्दी पर सितारा


खुश हैं हम , कामना पुरजोर है


दफ़न है सीने में कुछ


कैसे कह दें के हम बड़े चोर हैं


अपने दर्पण से भला कैसे छिपायें


दाग हैं , बढ़ी धड़कन , मचा शोर है


जाते उस गली हम , जो ये जानते


चौराहा , कटघरा ही उस गली का अन्तिम छोर है


कैसे करें सच का सामना


7 टिप्‍पणियां:

  1. ek behad hi khubsurat rachana jisame
    sach bayani ki khubsoorati hai ....atisundar

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  2. बहुत खूब
    सुन्दर एहसास अच्छी कविता

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  3. बहुत अच्छी रचना शारदा जी...वाह
    नीरज

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