गुरुवार, 27 नवंबर 2008

सड़कों पर बिखरा है लहू


वो जो सड़कों पर बिखरा है लहू
रुक के देख , किसका है ?
तेरा हाथ , तेरा पाँव , तेरे वजूद का हिस्सा तो नहीं ?

लहू के बदले लहू
इतनी जानों का लहू ,
कितने जन्मों में चुका पायेगा ?

इतनी आहों , इतनी सिसकियों की भरपाई कैसे होगी ?
कफ़न को सेहरा समझ ,भटकती रूहों की समाई कैसे होगी ?

तराजू में तुल के मिलती है रहमत ,मरहम के बदले
क्यों बने मोहरे , वहशत के कारोबार से सुकून कैसे होगा ?

चार दिन जो जन्नत का नजारा लेते
सफर का सुकून ही सब कुछ है
क्यों जहर का सहारा लेते

4 टिप्‍पणियां:

  1. हादसे इतने ज्यादा हैं वतन में अपने।
    खून से छपकर भी अखबार निकल सकते हैं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. " शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

    समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
    प्राइमरी का मास्टर

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  3. आपने बहुत अच्छा िलखा है । शब्दों में यथाथॆ की अिभव्यिक्त है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है । समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें -
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है